Khangarot Rajput History

जय मां भवानी इस वीडियो में खंगारोत का इतिहास || Khangarot Rajput History के बारे में बताया गया है जिन गुणों के कारण राजपूतों को सर्वश्रेष्ठ माना गया है यह सारी जानकारी ऑनलाइन times of rajasthan youtube चैनल से लिया गया है ||

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Khangarot Rajput History

खंगारोत कच्छावों का इतिहास || History of Khangarot Kacchawa || Times of Rajasthan 

 

 

खंगार राजपूतों की वंशावली

वीरता व बलिदान से भरा खंगार क्षत्रियों का इतिहास || Khangarot Rajput History खंगार क्षत्रिय वंश के राजाओं ने छठवीं शताब्दी से 1472 ईसवीं तक महमूद गजनवी, अलाउद्दीन खिलजी व मुहम्मद तुगलक से युद्ध किए और सोमनाथ मंदिर की रक्षा कर जीर्णोद्धार भी कराया। ईसा 1192 में तराइन के युद्ध में ¨हदूपति पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद गढ़ कुंडार में महाराजा खेत सिंह ने ¨हदू खंगार राज्य की नींव डाली।

खंगार की कुलदेवी

#चंदेरी नरेश महाराज श्री #मेदनीराय खंगार एवं खंगार महारानी माता #मणिमाला जी के #बलिदान दिवस पर #श्रद्धा सुमन समर्पित करते हुए ! खंगारोत का इतिहास || Khangarot Rajput History क्षत्रिय खंगार राजवंश की कुलदेवी माँ गजानन माँ की जय 🙏🙏

Khangarot Rajput History
क्षत्रिय खंगार राजवंश की कुलदेवी

 

खंगारोत कच्छावों का इतिहास

Khangarot Rajput History आमेर नरेश पृथ्वीराजजी के एक पुत्र जगमाल जी थे। जगमाल जी का जन्म विक्रमी संवत् 1564 को हुआ था। इन्हें भाईबंट में साईवाड़ का ठिकाना मिला था। जगमाल जी का एक विवाह उमरकोट में सोढ़ो के यहां हुआ था इनकी कुँवरानी का नाम आसलदे था जिसने अपने नाम पर आसलपुर बसाया था। जगमाल जी ने साईवाड़ दान में दे दिया था इसलिए इन्होंने अपनी कोटड़ी आसलपुर में बनवाई तथा डूंगर पर किला बनवाया था।

जब इनके पिता आमेरनरेश पृथ्वीराज जी राणा सांगा के साथ बाबर से युद्ध करने गये थे तब ये भी उनके साथ थे। जब बादशाह हुमायूं शेरशाह सूरी से हारकर सिन्ध में भाग गया था तब उमरकोट के शासक को कहकर जगमाल जी ने उसे वहां शरण दिलवाई थी। 1562 ईस्वी में जब आमेर के राजा भारमल जी ने मुगलों की अधीनता स्वीकार की थी तब जगमाल जी भी उनके साथ में थे।

जगमाल जी को बादशाह के सामने जब पेश किया गया तब बादशाह ने जगमाल जी को मनसब प्रदान कर उन्हें जागीर में नराणा ठिकाना दिया। ई. 1563 में बादशाह अकबर ने जगमाल जी को मेरठ का किलेदार बनाया था। बादशाह के तीसवें शासनकाल में ई. 1586 में इन्होंने टांडा में नोरोज बेग से मुकाबला किया वहां यह वीरगति को प्राप्त हुए थे। जगमालजी की स्मृति में आसलपुर में छतरी बनी हुई है। जगमाल जी के पांच पुत्र थे जिनमें महाराव खंगार जी सबसे बड़े पुत्र थे, जगमाल जी की मृत्यु होने पर पर यह नराणां के स्वामी हुए।

इन्हीं महाराव खंगार जी के वंशज खंगारोत कच्छावा कहलाते हैं। गुजरात पर जब बादशाह अकबर ने प्रथम आक्रमण किया था, तब महाराव खंगार जी बादशाह अकबर के साथ थे। बादशाह अकबर ने जब गुजरात पर दूसरी बार आक्रमण किया था तब राजधानी का प्रबन्ध राजा भारमाल जी को सौंपा गया था। इब्राहिम हुसैन मिर्जा गुजरात में हारने के बाद नागौर होता हुआ दिल्ली की तरफ बढ़ा तब राजा भारमल ने खंगार जी को सेना देकर भेजा। महाराव खंगार जी के जाने पर इब्राहिम हुसैन वहां से भाग गया। खंगार जी की सेना कांगड़ा भेजी गई जिसके साथ वे भी गये।

जब इब्राहिम हुसैन मिर्ज़ा ने पंजाब में उत्पात मचाया तब कांगड़ा की सेना उसको दबाने को भेजी गई। महाराव खंगार जी भी उस सेना में थे। मुलतान आदि स्थानों पर उससे युद्ध हुए, अन्त में इब्राहिम हुसैन मिर्जा पकड़ा गया। हल्दीघाटी के युद्ध में खंगार जी मानसिंह के साथ थे। गागरोन के खीचियों के विरुद्ध भी खंगार जी गये थे। बादशाह ने जब पटना पर हमला किया तब भी खंगार जी साथ में थे।

जब बूंदी के राव सुरजन हाड़ा के पुत्र दूदा ने बगावत की, तब खंगार जी को सेना देकर उनके विरुद्ध भेजा गया था। महाराव खंगार जी ने दूदा हाड़ा का झंडा छीन लिया था और बादशाह अकबर को पेश किया था। बादशाह ने वह झंडा खंगार जी को बख़्श दिया था। तब से खंगारो का वही झंडा है। यह लाल रंग का है तथा इसमें सुनहरी फूल है। फिर खंगार जी को शाहबाज खां के साथ बंगाल में तैनात किया गया।

जब बादशाह पंजाब में गये थे तब खंगार जी उनके साथ में ही थे। खंगार जी ने कुछ मुसलमान बनाई हुई स्त्रियों को वापस हिन्दू बनाया था। नराणां के अलावा पुरमांडल भी इनकी जागीर में था। इनका मनसब 2000 तक हो गया था। उनकी मांडलपुर में मृत्यु होना मानते हैं। इनकी 7 रानियां इनके साथ में ही सती हुई थी। महाराव खंगार जी के पन्द्रह लड़के थे।

उनके नाम इस प्रकार है- 1. नारायणदास नराणां 2. राघोदास धाणा 3. बैरसल गुढ़ा 4. मनोहरदास जोबनेर 5. बाघसिंह कालख 6. बुधसिंह 7. हम्मीरसिंह धाधोली 8. भाखरसिंह साखूण 9. किसनदास तूदेड़़ 10. अमरसिंह पानव 11. केशोदास मोरड़़ 12. सबलसिंह सीलावत 13. गोविन्ददास 14. तिलोकसिंह कमाण 15.बिहारीदास। महाराव खंगार जी के बड़े पुत्र नारायणदास जी उनके बाद नराणां के स्वामी हुए, नारायणदास के एक पुत्र को सोड़ावास का ठिकाना मिला था।

नारायणदास के बड़े पुत्र दुर्जनसाल ने नरूकों से रहलाणा विजय किया था। इनके वंश में रहलाणा और हरसोली ताजीमी ठिकाने थे। महाराव खंगार जी के तीसरे पुत्र बैरसल को गुढ़ा दिया गया था। अजमेर के मुहम्मद मुराद ने जब खंगारोतों के नराणा पर हमला किया था तब खंगार जी का पुत्र बैरसल युद्ध करके काम आया था। बैरसल का पुत्र केसरीसिंह नाथावतों के युद्ध में काम आया था। बैरसल के पुत्र उगरसिंह ने उगारियावास बसाया था। उसके वंश में उगरियावास का ठिकाना था। यह ताजीमी ठिकाना था।

उगरियावास के ठाकुर गजसिंह के छोटे पुत्र पहाड़सिंह के वंश में गुढा ठिकाना था। उगरियावास के गजसिंह के तीसरे पुत्र नाथजी के वंश में नवाण का ठिकाना था। खंगारजी के चौथे पुत्र मनोहरदास जी को जागीर में जोबनेर मिला था। इनके वंशज मनोहरदासोत खंगारोत कहलाते हैं।

मनोहरदास का छोटा पुत्र प्रतापसिंह मंढा ठिकाने का स्वामी हुआ, मंढा ताजीमी ठिकाना था। मंढा का ठाकुर भीमसिंह बड़ा प्रतापी था। विक्रमी संवत 1885 में वह रामगढ़ के लाड़खानियों की मदद पर गया था, जिनका मेड़तियों से युद्ध हो रहा था। उस युद्ध में भीमसिंह घायल हुआ। मनोहरदास के द्वितीय पुत्र प्रतापसिंह के वंश में मंढा और भादवा ताजीमी ठिकाने थे। खास चौकी के ठिकाने डोडी, कोठी प्रतापपुरा, दयालपुरा, जैसिंहपुरा, सिरानोड़ियां आदि थे।

मनोहरदास की मृत्यु होने पर उनके ज्येष्ठ पुत्र जैतसिंह को जागीर में जोबनेर मिला था। जैतसिंह को छोटा मनसब मिला हुआ था। यह जोबनेर की ज्वाला माई का परम भक्त था, ज्वाला माई का यह शक्तिपीठ बहुत प्राचीन है। जैतसिंह पर जब अजमेर से मुराद ने चढ़ाई की तो जैतपुर में जैतसिंह ने मुगल सेना का मुकाबला किया। यह युद्ध ई. 1649 में हुआ था, इस युद्ध में मुराद मारा गया था।

खंगारोतों ने साम्भर तक मुगल सेना का पीछा किया था। इस युद्ध में ठाकुर जैतसिंह का पुत्र कल्याणसिंह और उसके भाई सुजानसिंह का पुत्र विजयसिंह काम आये थे। जोबनेर के ठाकुर बनेसिंह अपने तीन पुत्रों रामसिंह, भारतसिंह और संग्रामसिंह सहित मावंड़ा के युद्ध में काम आये थे Khangarot Rajput History.

लोग पूछते भी हैं:-

खंगार वंश का गोत्र क्या है?

खंगार रणबांकुरे क्षत्रिय थे।

महाराजा खेत सिंह की मृत्यु कैसे हुई?

इस युद्ध में ऊदल मारे गए और आल्हा रण छोड़ कही चले गये ! महाराजा खेतसिंह ने पृथ्वीराज चौहान की साझेदारी में अनेक युद्ध लड़े ! इनकी मृत्यु सन १२१२ ई• में हो गई थी।

खंगार का मतलब क्या है?

तलवार चलाने में माहिर बुंदेलखंड की एक योद्धा जाति

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